आज कल कई बार खुद को आसमान को ताकते पता हूँ
कई बार सब को खोया हुआ नज़र आता हूँ
सोचता रहता हूँ की माँ तुम क्या कर रही होगी
तुम्हे कहीं मेरी चिंता तो नहीं हो रही होगी
या फिर कई बार युहीं चला जाता हूँ अपने खाबों में डूबता हुआ
चख क्र आता हूँ फिर वही स्वाद तुम्हारे हाँथ का
याद आती है देर से घर आने पर तुम्हारी दांत फटकार
याद आता है वह दिसंबर का महीना जब तुमने लाखों बार कहा था स्वेटर पेहेन जाने को
और मैंने अपने लड़खपन में मान लिया था मज़ाक
याद है मुझे माँ कैसे तुम मेरे पास कई घंटों तक बैठी रहीं थी
सही क्र दिया था तूने दो दिन में उस बीमारी को जो डॉक्टर ने कहा था की लम्बी चलेगी
याद आते है वह लम्हे भी आते है जब तुम पर गुस्सा हुआ था
मुझे पता है माँ तुमने तोह माफ़ कर दिया होगा, अब मैं खुद को कैसे माफ़ करूँ ये समझ नई आता
माँ याद है तेरी आँखों का वह हर एक आंसू
तब कभी समझ नई आता था की तुम क्या झेल रही हो
मुझे बड़ा करने के लिए तुम खुद को भूल रही हो
कई महीने हो गए सोचते सोचते आज लिख देना चाहता हु माँ
तुम्हारे लिए हमेशा तुम्हारा मासूम बच्चा रहूँगा मैं
पर तेरा बेटा आज बड़ा हो गया माँ
Beautiful lines Pravesh.I suggest you to send this poem to your mother . God bless you beta.
ReplyDeleteGreat lines bro..
ReplyDeleteबहुत सुंदर..। मै तो इन्हे आज पढ रहा हूँ , लेकिन जिस समय तुमने इन्हे लिखा होगा, उस समय ये,शायद और भी अद्भुत प्रतीत होती होगी
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